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मां ने दिया जिने का हौसला

हलीमा के पिता सरकारी दफ्तर मे चौकीदार थे।उनकी पगार काफी कम थी। पांच भाई-बहनों वाले बडे परीवार गुजारा बड़ी मुश्किल से होता था  पापा की अचानक तबियत बिगड़ जाने से  तब वह सिर्फ 8साल की थी 
परिवार मे मुसिबत का पहाड़ टुट पड़ था। मां कभी घर से बाहर नही निकली थी। घर का राशन खत्म हो चूका था भुखमरी की हालात पर आ गये।
जिदंगी पटरी से उतर पड़ी थी मा के साथ काम मे हाथ बटा रही थी। इसके बाद मां ठेला लेकर बाजार निकल जाती थी। और हलीमा बैग लादकर स्कूल निकल जाती थी। स्कूल की छुट्टी होने के बाद वह सिधे मां की दुकान पर आ जाती है। छोटी थी मगर मां की तकलीफे खुब समझती थी।शुरुआत मे उनकी दुकान की लाइसेंस नही था हर पुलिस द्वारा पकडे जाने का ड़र था।। हलीमा चाइनीज गल्स कालेज से हायर सेकंड़री की पढाई करने के बाद सिगांपुर युनिवसिर्टी मे तालिम हासिल की
और ये सिगंपुर की प्रथम महिला राष्टपति बनी।।

*"ठोकरें खाती हूँ पर*,
*शान" से चलती हूँ"*।
*"मैं खुले आसमान के नीचे*, 
 *सीना तान के चलती हूँ"*

         *"मुश्किलें तो सच है जिंदगी मे*,  
                  *आने दो- आने दो*"।
     *"उठूंगी, गिरूंगी ,फिर उठूंगी और*,
    *आखिर में "जीतूंगी मैं" यह ठान के चलती हूँ*....   
              
✍🏻✍🏻✍🏻
*एक "पेन" गलती कर सकता है*
*लेकिन ऐक "पेन्सिल"  गलती नही कर सकती...*
*क्यों..??*
*क्योंकि*
*उसके साथ दोस्त है... *"रबर"*!
*जब तक एक *सच्चा दोस्त* 
*आपके साथ है ,*
*वह आपकी "जिंदगी" की गलतियाँ मिटाकर*
*आपको अच्छा "इंसान" बना देगा... इसलिए*
*"सच्चे" और "अच्छे" दोस्त हमेशा साथ रखिऐ!*


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