एक यहुदी किसी मुस्लमान का पडोसी था। हमारे यहा जब इस्लामी हुकुमते होती थी। तो जो गैर मुस्लिम जिम्मी बन कर हमारे साथ रहते थे।उनके हुकूक बहोत ख्याल रखा जाता था।हमारी हदीश शरीफ और फिका की किताबो मे इन जिम्मीयो के मसायल के हुकूक पर बहोत ही मुफश्शल हिदायत मोजूद है।इस यहुदी के साथ जिसका मुस्लमान पड़ोसी बहुत अच्छा सलूक करता था।इस मुस्लमान की आदत थी कि वह हर थोड़ी देर बाद ये जुमला कहता था।की हजरत मोहम्मद स0 अ0 पर दरूद शरीफ भेजने से हर दुआ कबूल होती है।और हर हाजत और मुराद पुरी होती है जो कोइ इस मुस्लमान से मिलता वो मुस्लमान ये जुमला जरूर सुनाता और जो भी मुस्लमान इसके साथ बैठता इसे भी मजलिश मे कइ बार जुमला मुक्कमल यकीन के साथ सुनाता था।हजरत मोहम्मद स0 अ0 पर दरूद शरीफ भेजने से हर दुआ कबूल होती है और हर हाजत मुराद पुरी होती है।इस मुस्लमान के जुमले से पडोसी यहुदी को तकलीफ बहुत होती थी।मगर क्या कर सकता था इसे अपने कामो और जरूरियात के लिये बार बार इस मुस्लमान से मिलना होता और इन मुलाकातो के दरमियान इसे कई बार यही जुमला सुन्ने को मिलता की हजरत मोहम्मद स0 अ0 पर दरूद शरीफ भेजने से हर दुआ कबूल होती है।और यह यहुदी इस मुस्लमान को झुटा करने को ठान लि इसने एक साजिस तैयार ताकि मुस्लमान जलील और रूसवा किया जाये और दूरूद शरीफ की तासीर पर इसके यकीन को कमजोर किया जाये और इससे यह जुमला कहने की आदत छुड़ाई जाये यहुदी ने सोनार से एक अंगूठी बनवाई और उसने कहा की इसके अलावा और कोइ अंगूठी इस दुनिया मे ना हो सोनार ने अंगूठी बनादी यहुदी अंगूठी लेकर मुस्लमान के पास आया हाल अहवाल के बाद मुस्लमान ने वही जुमला कहा यहुदी ने दिल मे कहा अब बहोत हो गयी बहोत जल्द ये जुमला तुम भुल जाओ गे कुछ देर बातचीत के बाद यहुदी ने कहा सफर पर जा रहा हु मेरी एक अंगूठी है वो मै आपके पास अमानत रखना चाहता हु।वापसी पर आपसे ले लुगा मुस्लमान ने कहा कोइ मसला नही आप बेफिकर रहै। यहुदी ने वो अंगुठी मुस्लमान को दी और वहा से चला गया यहुदी ने अंदाजा लगा लिया कि वह अंगूठी कहा रखी है रात को यहुदी छुपकर मुस्लमान के घर कुदा और अंगूठी तलास कर ली और अपने साथ ले गया अगले दिन वह समुन्द्र मे गया और एक कस्ती पर बैठ कर समुन्द्र की गहराई पर जा पहुचा वहा अंगुठी फेक दी फिर अपने सफर पर रवाना हो गया यहुदी वापस आ गया और आते ही मुस्लमान के पास गया और अंगूठी तलब की मुस्लमान ने कहा आप इत्तमिनान से बैठै आज दरूद शरीफ की बरकत से मे सूबह दुआ करके शिकार के लिये निकला था।तो मुझे एक बडी मछली हाथ लग गयी आप सफर से आये है वो मछली खाकर जाये जब मछली का पेट को काटा तो उसमे सोने की अंगुठी निकली और ये बिलकुल उसी तरह है जो यहुदी की अमानत रखी थी।वो मुस्लमान जल्दी से गया जहा उसने अंगूठी रखी थी।अंगूठी वहा मोजूद नही थी। मुस्लमान ने अंगूठी मछली के पेट से निकाल कर यहुदी के पास ले गया ये देखकर यहुदी दंग रह गया फिर यहुदी थोड़ी देर तक कापने लगा फिर बलक बलक कर रोने लगा।मुस्लमान उसे हैरानी से देख रहा था यहुदी ने कहा मुझे गुशल की जगह दे दे गुशल कर के आया और फौरन कलम-ये-तैयबा पढने लगा। वो भी रो रहा था और इसका मुस्लमान दोस्त भी और मुस्लमान इसे कलमा पढा रहा था और यहुदी ये अजीम कलमा पढा रहा था||
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